Saturday, February 26, 2011

खुश हूँ

ज़िन्दगी है छोटी, पर मैं खुश हूँ।
जैसे भी हालात में हूँ, इस हालात में खुश हूँ।
आज गाड़ी में जाने का वक्त नहीं, दो कदम चलकर ही खुश हूँ।
आज किसी का साथ नहीं है,किताब पढ़ के ही खुश हूँ।
आज कोई नाराज़ है, उसके इस अन्दाज़ में ही खुश हूँ।
जिसको पा नहीं सकता, उसकी याद में ही खुश हूँ।
बीता हुआ कल जा चुका है, उसकी मीठी यादों में ही खुश हूँ।
धीरे- धीरे ये पल बीतेंगे, ये सोचकर ही खुश हूँ।
ज़िन्दगी है छोटी, पर हर पल मैं खुश हूँ॥
॥ खुश हूँ ॥

[एक दोस्त]

7 comments:

Mamta Tripathi said...

कविता से पता नहीं चल रहा कि तुम खुश हो या दुखी। कुल मिलाकर कविता छोटी पर मार्मिक है।

please disable word varification......

Raj said...

dhanyvaad Mamtaji........

Mukesh said...

काव्य जगत में स्वागत है...कविता पढकर मैं बहुत खुश हूँ...दूसरी कविता अपेक्षित है...

Mukesh said...

काव्य जगत में स्वागत है...कविता पढकर मैं बहुत खुश हूँ...दूसरी कविता अपेक्षित है...

Praveen Kumar Dwivedy said...

यह कविता बहुत अच्छी लगी ..............

Raj said...

Dhanya vad Mukesh Ji Prerna vardhn ke liye

Raj said...

Shukriya Praveen ji kavita pasand karne ke liye.