एम. फिल हेतु शोधप्रस्ताव
अमरकोष में “धी-वर्ग” का विवेचन
(“रामाश्रमी” टीका के विशेष आलोक में)
रजनीश कुमार पाण्डेय
विषय चयन का औचित्य 5-7
इस क्षेत्र में हुए शोध कार्यों का सर्वेक्षण 7
प्राथमिक स्रोत 7-8
शोध प्रविधि 8
अस्थायी अध्याय विभाजन 8
1.विषय-क्षेत्र एवं उद्देश्य (Scope and Objective) – संसार की भाषाओं के क्रमिक विकास का ज्ञान उनके कोष ग्रन्थों के अध्ययन पर निर्भर करता है । राष्ट्र के मस्तिष्क की सबलता उसके साहित्य की भित्ति पर है । साहित्य की अभिवृद्धि पर कोष की वृद्धि होती है – यह सर्वमान्य सिद्धान्त है । जिस भाषा में जितने अधिक कोष ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, वह उतनी ही सजीव मानी जाती है । अतः साहित्य और कोष का पारस्परिक दृढ़ सम्बन्ध है । कहा भी गया है –
“ अवैयाकरणस्त्वन्धः बधिरः कोषविवर्जितः ।“
बिना कोष के राजा और बिना कोष के विद्वान् निरर्थक हैं । इस सम्बन्ध में संस्कृत भाषा अत्यन्त समृद्ध रही है । वैदिककाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा में अनेक कोष ग्रन्थों की रचना की जा चुकी है । प्राचीनतम कोष “निघण्टु” के नाम से प्रसिद्ध है । सिंहली भाषा में कोष को “निघण्टु” नाम से ही जाना जाता है । कोष का एक उद्देश्य कविजनों को काव्यकला के विस्तार करने में सहायता देना होता है । मुख्यतः कोष ग्रन्थों की रचना अनुष्टुप् और आर्या नामक छन्दों में हुई है ।
मुख्यतः कोष दो प्रकार के होते हैं –
१. समानार्थ कोष -: जिनमें शब्दों का सङ्ग्रह विषय के क्रम से किया गया हो ।
२. अनेकार्थ / नानार्थ कोष -: जिनमें एक शब्द के अनेक अर्थों का चयन किया गया हो ।
संस्कृत कोषकारों में कात्य, वाचस्पति, व्याडि, भागुरि, अमर, मङ्गल, हेमचन्द्र आदि प्रसिद्ध है । अमरसिंह कृत अमरकोष, हलायुध कृत अभिधानरत्नमाला, यादवप्रकाश कृत वैजयन्तीकोष, महेश्वर कृत विश्वप्रकाश, मेदिनिकर कृत मेदिनिकोष, मंख कृत अनेकार्थकोष इत्यादि संस्कृत साहित्य के प्रमुख कोष ग्रन्थ हैं । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में अमरसिंह कृत अमरकोष के धी-वर्ग का विवेचन “रामाश्रमी” टीका के साथ करना अभीष्ट है ।
अमरकोष -: अमरकोष के रचनाकार अमरसिंह हैं । जो स्थान व्याकरण में पाणिनि का, काव्यशास्त्र में मम्मट का, अद्वैतवेदान्त में शङ्कर का तथा वैदिककाल में यास्क का है, वही स्थान संस्कृत कोषशास्त्र में अमरसिंह का है । आज भी यह परम्परा प्रचलित है कि अमरसिंह विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे ।[1] इसके अतिरिक्त आठ शाब्दिकों में भी वे एक माने जाते हैं ।[2] किन्तु इसके आधार पर भी अमरसिंह के देश-काल के विषय में निश्वित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता । क्योंकि विक्रमादित्य का समय-निर्धारण ही निश्चित रूप से नहीं किया जा सकता । फिर भी विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका समय चतुर्थ शताब्दी रखा जा सकता है ।[3] क्योंकि छठी शताब्दी में अमरकोष का चीनी भाषा में अनुवाद प्राप्त होता है । अतः अमरसिंह का समय छठी शताब्दी से पूर्व ही रहा होगा । क्षीरस्वामी तथा सर्वानन्द – दोनों मान्य टीकाकारों के अनुसार, अमरसिंह बौद्ध थे ।[4]
अमरकोष के तीन नाम मिलते हैं –
क. अमरकोष
ख. नामलिङ्गानुशासन
ग. त्रिकाण्ड / त्रिकाण्डी
अमरकोष संस्कृत वाङ्मय का पर्याय-कोष है । अंग्रेजी भाषा में पहला और प्रामाणिक पर्याय कोष Roget द्वारा रचित “Thesaurus” है । अमरकोष की महत्ता इसी तथ्य से स्पष्ट होती है कि इसे विश्व का पिता कहा गया है –
“ अष्टाध्यायी जगन्माता अमरकोषो जगत्पिता । “
इसके अतिरिक्त, अमरकोष पर अब तक ४० से अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है । जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है । अमरकोष में कुल तीन काण्ड है –
क. प्रथम काण्ड -: प्रथम काण्ड स्वरकाण्ड है । इसमें कुल दस वर्ग हैं, जो निम्नलिखित हैं –
१.स्वर्ग वर्ग, २. व्योम वर्ग, ३. दिक् वर्ग ४. काल वर्ग ५. धी वर्ग, ६. शब्दादि वर्ग, ७. नाट्य वर्ग, ८. पातालभोगि वर्ग, ९. नरक वर्ग, १०. वारिवर्ग
ख. द्वितीय काण्ड -: द्वितीय काण्ड भूम्यादिकाण्ड है । इसमें कुल दस वर्ग हैं -
१. भूमि वर्ग, २. पुर वर्ग, ३. शैल वर्ग, ४. वनौषधि वर्ग, ५. सिंहादि वर्ग,
६. मनुष्यवर्ग, ७. ब्रह्मवर्ग, ८. क्षत्रिय वर्ग, ९. वैश्य वर्ग, १०. शूद्र वर्ग
ग. तृतीय काण्ड -: तृतीय काण्ड समाख्या काण्ड है । इसमें कुल पाँच वर्ग हैं -
१. विशेष्यनिघ्न वर्ग, २. सङ्कीर्ण वर्ग, ३. नानार्थ वर्ग,
४.अव्यय वर्ग, ५. लिङ्गादिसङ्ग्रह वर्ग
इस प्रकार सम्पूर्ण अमरकोष में तीन काण्ड, पच्चीस वर्ग तथा १५०० अनुष्टुप् हैं । अमरसिंह स्वयं स्वीकार करते हैं कि अमरकोष में परिगणित शब्दों के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी शब्द हैं जिनको उन्होंने छोड़ दिया है ।[5] प्रस्तुत लघु शोध प्रबन्ध में सम्पूर्ण अमरकोष का अध्ययन करना सम्भव नहीं है । अतः प्रथम काण्ड में उल्लिखित “धी वर्ग” का विवेचन “रामाश्रमी” टीका के साथ करना प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का उद्देश्य है । धी वर्ग में मुख्यतया बुद्धि, अहंकार, रंगों, गन्ध, रस इत्यादि के पर्यायों का उल्लेख किया गया है ।
रामाश्रमी टीका में, अमरकोश में परिगणित शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति दिया गया है । अभी तक इस टीका का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है । शोधार्थी की दृष्टि में रामाश्रमी टीका से सम्बन्धित कोई भी शोध प्रबन्ध प्राप्त नहीं होता ।
विषय चयन का औचित्य -: शोधार्थी ने परास्नातक (तृतीय व चतुर्थ सत्र) में हलायुध कोष पर कार्य किया है । तृतीय-सत्र में Lexicography नामक विषय भी परास्नातक के समय पढा़या गया था । यद्यपि शोधार्थी कतिपय कारणों से यह विषय नहीं पढ़ पाया, तथापि उपर्युक्त कारणों से ही शोधार्थी का ध्यान कोषविषयक शोधकार्य की ओर आकृष्ट हुआ ।
अमरकोष में धीवर्ग के अन्तर्गत बुद्धि सम्बन्धी विभिन्न शब्दों के पर्यायों का उल्लेख किया गया है । किन्तु ऐसा नहीं है कि प्रत्येक पर्यायवाची शब्द वस्तु के एक ही अर्थ को प्रस्तुत करते हों, अपितु प्रत्येक पर्यायवाची शब्द वस्तु के विशिष्ट अर्थ को प्रस्तुत करते हैं । यथा - बुद्धि शब्द के पर्यायों की चर्चा करते हुए धीवर्ग में कहा गया है –
“बुद्धिर्मनीषा धिषणा धीः प्रज्ञा शेमुषी मतिः ।
प्रेक्षोपलब्धिश्चित्संवित्प्रतिपज्ज्ञप्तिचेतनाः ॥ १ ॥[6]
अर्थात् बुद्धि, मनीषा, धिषणा, धीः, प्रज्ञा, शेमुषी, मति, प्रेक्षा, उपलब्धि, चित्, संवित्, प्रतिपत्, ज्ञप्ति, , चेतना - ये बुद्धि के १४ पर्याय हैं । और सभी स्त्रीलिङ्ग हैं ।
इनमें से कुछ पर्यायों की निरुक्ति और व्युत्पत्ति रामाश्रमी टीका के आधार पर निम्नलिखित है –
निरुक्ति व्युत्पत्ति
१. बुद्धि -: बुध्यतेऽनया, बोधनं वा । बुध् धातु + क्तिन् प्रत्यय
२. मनीषा -: मनस ईषा मनस् धातु + ईष प्रत्यय
(ईष गतिहिंसादर्शनेषु)
’गुरोश्च हलः’ इत्यप्रत्ययः मनस ईषा
शकन्ध्वादित्वात् टेः पररूपम्- मनीषा
३. प्रज्ञा –: प्रज्ञायतेऽनया, प्रज्ञानं वा प्र उपसर्गपूर्वक ज्ञा धातु
(ज्ञाऽवबोधने) आतश्चोपसर्गे इत्यङ्
इस प्रकार पहले पर्याय का अर्थ हुआ – जिसके द्वारा बोध किया जाय । दूसरे का अर्थ हुआ – मन की गति या मन का दर्शन । तीसरे का अर्थ है – जिसके द्वारा जाना जाता है । उपर्युक्त तीनों शब्द एक ही ’बुद्धि’ शब्द के पर्याय हैं, किन्तु सभी उसके अलग- अलग पक्ष को बताते हैं । अमरकोष पर आज तक ४० से भी अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है । उनमें से कुछ प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं –
१. अमरकोशोद्घाटन -: इसके रचनाकार क्षीरस्वामी हैं । यह क्षीरस्वामी का प्रमेयबहुल ग्रन्थ है । यह अमरकोष की सबसे प्राचीन टीका है । क्षीरस्वामी के समय के विषय में स्पष्टरूप से नहीं कहा जा सकता । परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका समय १०८० ई० से ११३० ई० के मध्य निर्धारित किया जा सकता है ।
२. टीका सर्वस्व -: इसके रचनाकार सर्वानन्द हैं । ये बंगाल के निवासी थे । इनके विषय में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार इनका समय ११५९ ई० है ।
३. कामधेनु -: इसके रचनाकार सुभूतिचन्द्र हैं । इस टीका का अनुवाद तिब्बती भाषा में भी उपलब्ध है । इनका समय ११९१ ई० के आसपास है ।
४. रामाश्रमी -: इस टीका के रचनाकार भट्टोजि दीक्षित के पुत्र भानुजि दीक्षित हैं । इस टीका का वास्तविक नाम ’व्याख्या सुधा’ है । संन्यास लेने के बाद भानुजि ने अपना नाम रामाश्रम रख लिया । उनके नाम के आधार पर यह टीका “रामाश्रमी टीका” के नाम से प्रसिद्ध हुई ।[7] आज यह प्रायः इसी नाम से जानी जाती है ।
रामाश्रमी टीका में, अमरकोश में परिगणित शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति दी गयी है । अभी तक इस टीका का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है । यह अमरकोष की एकमात्र ऐसी टीका है, जिसमें शब्दों की व्याकरणिक व्युत्पत्तियों के साथ – साथ निरुक्ति भी दी गयी है । यास्क कृत निरुक्त में कहा गया है –
“सर्वाणि नामानि आख्यातजानि ।“[8]
इसी सिद्धान्त का पालन करते हुए भानुजि दीक्षित ने अमरकोष में परिगणित शब्दों का निर्वचन किया है । वे भी सभी शब्दों को धातुज मानते हुए उनका निर्वचन करते हैं ।
इस क्षेत्र में हुए शोध कार्यों का सर्वेक्षण (Servey) -: इस विषय पर शोधार्थी को कोई शोध कार्य दृष्टिगोचर नहीं होता, किन्तु अमरकोष की अन्य टीकाओं को आधार बनाकर विभिन्न शोध प्रबन्ध प्राप्त होते हैं । जिनमें से “स्थालीपुलाकन्यायेन” कुछ प्रमुख शोध प्रबन्ध निम्नलिखित है –
१. गुप्ता, सुधा - सामाजिक विकास : अमरकोश से हलायुध तक (प्रो० सत्य पाल नारङ्ग के निर्देशन में एम० फिल हेतु लघु शोध प्रबन्ध, दिल्ली विश्वविद्यालय, १९७९) अप्रकाशित
२. फक्का(खन्ना), सुषमा - देववाची शब्दों का विकास – संस्कृत कोषों के आधार पर, १२वीं शती तक
३. शर्मा, सुधा - क्षीरस्वामीकृत “अमरकोशोद्घाटन” टीका का समालोचनात्मक अध्ययन (प्रो० सत्य पाल नारङ्ग के निर्देशन में एम० फिल के लिए लघु शोध प्रबन्ध, दिल्ली विश्वविद्यालय, १९८०) अप्रकाशित
शोध वैशिष्ट्य -: प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में अमरकोष के धीवर्ग का विवेचन रामाश्रमी टीका एवं अन्य टीकाओं के आधार पर करना अभीष्ट है, जो कि सर्वथा नवीन शोध कार्य है । शोधार्थी को उपर्युक्त शोध से सम्बन्धित कोई भी शोध कार्य उपलब्ध नहीं हुए । अतः प्रस्तुत शोध प्रबन्ध सर्वथा भिन्न है ।
प्राथमिक स्रोत (Primary Source) -: प्रस्तुत शोध प्रबन्ध से सम्बन्धित प्राथमिक स्रोत निम्नलिखित है –
१. अभिमन्यु, श्रीमन्नालाल अमरकोष : भाषा टीका सहित, चौखम्बा ओरिएण्टल, वाराणसी २००८
२. शास्त्री, हरहोविन्द अमरकोष : भानुजिदीक्षितकृत रामाश्रमी प्रकाशाख्यव्याख्योपेतः-, चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी २००६
३. विद्याभूषण, सतीशचन्द्र अमरकोष (तिब्बती अनुवाद), कोलकाता, एशियाटिक सोसाइटी, १९११
४. पण्डित शिवदत्त अमरकोष, श्री भानुजिदीक्षितकृत सुधाख्या रामाश्रमीत्यपरा टीका सहित, राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थान, पुनर्मुद्रित, नई दिल्ली, २००३
५. तिवारी, यज्ञदत्त अमरसिंहविरचित अमरकोष भाषाविवरणसहित (हिन्दी), नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान, नेपाल, १९८९
शोध प्रविधि (Research Method) -: प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के अन्तर्गत पहले धीवर्ग में परिगणित शब्दों का संकलन किया जायेगा । तदनन्तर अन्य टीकाओं एवं रामाश्रमी टीका में उल्लिखित धीवर्ग के पाठभेदों एवं निरुक्तियों तथा व्युत्पत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जायेगा । इस प्रकार शोध प्रविधि विवेचनात्मक तथा तुलनात्मक होगी ।
अस्थायी अध्याय विभाजन :- प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के अध्यायों का विभाजन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जाना अभीष्ट है –
१. विषय प्रवेश
२. अमरकोष एवं विभिन्न टीकाएँ
३. रामाश्रमी टीका के अनुसार धी वर्ग का विवेचन
४. उपसंहार
Primary Sources:-
१. अभिमन्यु, श्रीमन्नालाल अमरकोष : भाषा टीका सहित, चौखम्बा ओरिएण्टल, वाराणसी २००८
२. शास्त्री, हरहोविन्द अमरकोष : भानुजिदीक्षितकृत रामाश्रमी प्रकाशाख्यव्याख्योपेतः-, चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी २००६
३. नारङ्ग, प्रो० सत्य पाल संस्कृत कोष शास्त्र के विविध आयाम , राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली १९९८
४. उपाध्याय, बलदेव संस्कृत शास्त्रों का इतिहास, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, १९९४
५. विद्याभूषण, सतीशचन्द्र अमरकोष (तिब्बती अनुवाद), एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता, १९११
६. तिवारी, यज्ञदत्त अमरसिंहविरचित अमरकोष भाषाविवरणसहित (हिन्दी), नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान, नेपाल,
Secondary Sources:-
१. द्विवेदी, डॉ बालमुकुन्द संस्कृत कोष : उद्भव और विकास, स्मृति प्रकाशन, इलाहाबाद, १९७९
२. त्रिपाठी, कैलाशचन्द्र अमरकोष का भाषावैज्ञानिक अध्ययन, चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी, १९८४
३. वर्मा, रामचन्द्र कोष-कला, साहित्य रत्नमाला, वाराणसी, १९५२
४. पाटकर, मधुकर मंगेश कोष-कल्पतरु, डेक्कन कॉलेज़ पी.जी. रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना, १९६६
५. खण्डेकर, काशीनाथ वासुदेव संस्कृत-कोष, चन्द्र प्रकाश पब्लिकेशन्स, बॉम्बे, १८६६
६. ---------- कोष विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, १९७९
७. Patkar, Madhukar Mangesh History of Sanskrit Lexicography, Munshiram Manoharalal Publishers Pvt. Ltd., New Delhi, 1981
८. Patridge, Eric, The Gentle art of Lexicography; Andre Deutsch Ltd. London-1963
९. Katre Sumitra mangesh, Indo Aryan Lexicography; Poona Orientalist Vol. 15, 1937
१०. Mishra, B. G., An Introduction to Lexicography; CIIL, Mysore-1982
११. Mishra B. G., Lexicography in India; CIIL, Mysore-1980
१२. A Bibliography of Dictionaries and Encyclopedias in Indian Languages; National Library Calcutta
१३. Huet, Gerard, Structure of a Sanskrit Dictionary; INRIA-Rocquencourt, Sep. 1, 2000
(3) Lexical Resources:-
1.Huet, Gerard Sanskrit – French electronic dictionary, 2004
2. Colebrooke, H.T. Dictionary of the Sanskrit language with English interpretation & annotation, New Delhi, 1989
3. Bontes, Louis stand-alone PC based version of Monier Williams dictionary, 2005
4. Apte Sanskrit Dictionary Search - a web Sanskrit dictionary based on the famous work of V. S. Apte - The Practical Sanskrit-English Dictionary
5. BharatiyaBhasha multilingual dictionary built by Central Hindi Directorate, New Delhi under TDIL
(4) Research Have Done -
१. गुप्ता सुधा - सामाजिक विकास : अमरकोश से हलायुध तक दिल्ली विश्वविद्यालय, १९७९
२. फक्का (खन्ना) सुषमा - देववाची शब्दों का विकास – संस्कृत कोषों के आधार पर, १२वीं शती तक
३. शर्मा ४. शर्मा सुधा - क्षीरस्वामीकृत “अमरकोशोद्घाटन” टीका का समालोचनात्मक अध्ययन, दिल्ली विश्वविद्यालय, १९८०
(5) Intrnet Sources :-
http://sanskrit.jnu.ac.in/amara/index.jsp
http://asignoret.free.fr/index.html
http://aa2411s.aa.tufs.ac.jp/~tjun/sktdic/
http://tdil.mit.gov.in/download/BharatiyaBhasha.htm
http://members.ams.chello.nl/l.bontes/.
http://www.uni-koeln.de/phil-fak/indologie/tamil/cap_search.html
http://sanskritdocuments.org/dict/
http://pauillac.inria.fr/~huet/SKT/indo.html
१. धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशङ्कुर्वेतालभट्टघटकर्परकालिदासः ।
ख्यातो वाराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य ॥
- शब्दकल्पद्रुम पेज-८३
२. इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्न आपिशली शाकटायनः ।
पाणिन्यमरजैनेन्द्रजयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः ।। वही
३. भूमिका तथा प्राचीन मतों का भूमिकाओं से संकलन - Vogel Pg. 09 - 310
४. संस्कृत शास्त्रों का इतिहास- कोष विद्या का इतिहास
५. शेषं ज्ञेयं शिष्टप्रयोगतः । - अमरकोष ३.५.४६
६. अमरकोष- धीवर्ग १
७. संस्कृत शास्त्रों का इतिहास- कोष विद्या का इतिहास
८. निरुक्त – प्रथम अध्याय
3 comments:
काफी दिनों बाद ब्लॉग्स्पॉट पर तुम्हारी उपस्थिति पुनः देखकर अच्छा लगा। आशा है नियमितता बनाए रखोगे। किसके अंदर में एम.फिल. कर रहे हो?
ब्लॉगजगत में वर्ड वेरीफिकेशन को फालतू का जंजाल माना जाता है, इसे हटा दो तो टिप्पणीकारों को आसानी रहे.
शुभास्ते पन्थानः सन्तु......
Very Good. Keep it up. Come up with some better posts. M.Phil. Synopsis dena is not a good idea. It is a part of your research which should be well guarded until you are over with it.
ब्लाग पढ़ कर अच्छा लगा ।कोश में कितने वर्ण किस क्रम में रखे जाते हैं । अनुस्वार और अनुनासिक का क्या क्रम रहता है । अ से आरंभ कर अंतिम वर्ण तक बताने का कष्ट करें । धन्यवाद । negisk@gmail.com
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