बनारस में सबसे पहले अगर कहीं सुबह होती है तो प्रहलाद घाट मुहल्ले में।
जैसे ही सवा छह हुआ कि दो बातें एक साथ होती हैं।
जगेसर मिसिबीर सूर्य भगवान को जल चढ़ाते हैं।
दूसरी ये कि परमिला नहा कर छत पर कपड़े फैलाने आ जाती है।
मिसिर जी के होंठ कहते हैं- "ओम् सूर्याय नम:"
और
दिल कहता है-
'मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है'।
इसी सूर्य और चंद्र के बीच जगेसर बाबा साढ़े तीन साल से झूल रहे हैं।
आज जगेसर जी तीन लोटा जल चढ़ा चुके थे पर उनका 'चांद' नहीं दिखा।
फिर चौथा लोटा
फिर पांचवा..... ...
दसवां।
पंडितजी अब परेशान कि आखिर मामला क्या है?
अब तक तो 'चाँद' दिख जाता था।
सामने से सनिचरा गाना गाते हुए जा रहा है...
"मेरा सनम सबसे प्यारा है...सबसे...।"
जगेसर जल्दी से घर में आते हैं।
फेसबुक स्टेट्स चेक करते हैं।
परमिला ने आज गुडमार्निंग का मैसेज भी नहीं भेजा।
फोन करते हैं कालर टोन सुनाई देता है.....
ओम् त्र्यम्बकं यजामहे......।
दुबारा तिबारा फोन करते हैं।
पाँच मिनट बाद फोनउठता है। पण्डितजी व्यग्रता से पूछते हैं-
"अरे कहां हो जी?"..
"आज दिखी ही नहीं....
तबीयत ठीक ठाक है न?"
उधर की आवाज़- "पंडीजी हमरा बियाह तय हो गया है।..
अब हम छत पर नहीं आ सकते। .....
फोन भी मत कीजिएगा।.....
फेसबुक पर हम आपको ब्लॉक कर दिए हैं।...
बाबूजी कह रहे थे कि बेरोजगार से बियाह करके हम लड़की को........."
जगेसर बात काटते हैं-
"अरे तो हमको नौकरी मिलेगी नहीं का?"
परमिला डाँटती है-
"चुप करिए पंडीजी!
2008 में जब आप बी०एड्० करते थे तब से एही कह रहे हैं।......
बिना दूध का लईका कौ साल जिलाएंगे??"
दिन के दस बज रहे हैं। तापमान अभी सैंतालीस के आसपास हो गया है।पूरा अस्सी घाट खाली हो गया है। दो चार नावें दूर गंगा में सरक रही हैं। चमकती जल धारा में सूर्य का वजूद हिल रहा है। कुछ बच्चे अभी भी नदी में खेल रहे हैं।
पंडीजी सीढ़ियों पर बैठे अपना नाम दुहराते हैं-
"पंडित जगेश्वर मिश्र शास्त्री
प्रथम श्रेणी,
आचार्य,
गोल्ड मेडलिस्ट,
नेट क्वालीफाईड,
बीएड 73%,
2011 में लेक्चरर का फार्म डाला अभी तक परीक्षा नहीं हुई।
2013 में परीक्षा दी,
नौ सवाल ही गलत आए थे और तीन सवालों के जवाब बोर्ड गलत बता रहा है।
मतलब साफ है इसमें भीकोई चांस नहीं।
डायट प्रवक्ता से लेकर उच्चतर तक की परीक्षा ठीक हुई है। पर छह महीने बाद भी भर्तीका पता नहीं।
प्राईमरी टेट में 105 अंक हैं। मतलब इसमें भी चांस नहीं।
2012 में पी०एचडी० प्रवेश परीक्षा पास की थी पर अभी तक किसी विश्वविद्यालय ने प्रवेश ही नहीं लिया।
तभी बलराम पांडे कन्धे पर हाथ रखते हैं-
"अरे शास्त्री जी!..
पहला मिठाई आप खाइए।"..
हमरा शादी तय हो गया है।.....
पं०रामविचार पांडे की लड़की परमिला से।
आप मेरा हाईस्कूल, इण्टर का कापी न लिखे होते तो
हमारा एतना अच्छा नंबर नहीं आता।
न हम शिक्षामित्र हुए होते।
न आज मास्टर बन पाते।
न आज एमे पास सुन्दर लड़की से बियाह होता।"
जगेसर मिसिर के हाथ में लड्डू कांप रहा है।
तभी बलराम पांडे फिर बोलते हैं-
"अच्छा!
'अग्नये स्वाहा' में कौन विभक्ति होती है एक बार फिर समझा दिजियेगा...
कोई पूछ दिया तो ससुरा बेइज्जती खराब हो जाएगी।"
जगेसर नशे की सी हालत में घर में घुसते हैं।
हवन- सामग्री तैयार करते हैं।
और
हवन पर बैठ जाते हैं। अबअग्नि में समिधाएँ जल रही हैं।
अचानक उठते हैं और अपने सारे अंकपत्र-प्रमाणपत्र अग्नि में डाल देते हैं।
और
चिल्लाते हैं-
"अग्नये स्वाहा!
अग्नये स्वाहा!!...
चतुर्थीविभक्ति एक वचन...
चतुर्थी विभक्ति एक वचन!!"
और
मूर्छित होकर वहीं गिर पड़ते हैं।
अगले दिन के अखबार में वही रोज की खबरें होंगी-
गर्मी ने ली एक और व्यक्ति की जान .....
जैसे ही सवा छह हुआ कि दो बातें एक साथ होती हैं।
जगेसर मिसिबीर सूर्य भगवान को जल चढ़ाते हैं।
दूसरी ये कि परमिला नहा कर छत पर कपड़े फैलाने आ जाती है।
मिसिर जी के होंठ कहते हैं- "ओम् सूर्याय नम:"
और
दिल कहता है-
'मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है'।
इसी सूर्य और चंद्र के बीच जगेसर बाबा साढ़े तीन साल से झूल रहे हैं।
आज जगेसर जी तीन लोटा जल चढ़ा चुके थे पर उनका 'चांद' नहीं दिखा।
फिर चौथा लोटा
फिर पांचवा..... ...
दसवां।
पंडितजी अब परेशान कि आखिर मामला क्या है?
अब तक तो 'चाँद' दिख जाता था।
सामने से सनिचरा गाना गाते हुए जा रहा है...
"मेरा सनम सबसे प्यारा है...सबसे...।"
जगेसर जल्दी से घर में आते हैं।
फेसबुक स्टेट्स चेक करते हैं।
परमिला ने आज गुडमार्निंग का मैसेज भी नहीं भेजा।
फोन करते हैं कालर टोन सुनाई देता है.....
ओम् त्र्यम्बकं यजामहे......।
दुबारा तिबारा फोन करते हैं।
पाँच मिनट बाद फोनउठता है। पण्डितजी व्यग्रता से पूछते हैं-
"अरे कहां हो जी?"..
"आज दिखी ही नहीं....
तबीयत ठीक ठाक है न?"
उधर की आवाज़- "पंडीजी हमरा बियाह तय हो गया है।..
अब हम छत पर नहीं आ सकते। .....
फोन भी मत कीजिएगा।.....
फेसबुक पर हम आपको ब्लॉक कर दिए हैं।...
बाबूजी कह रहे थे कि बेरोजगार से बियाह करके हम लड़की को........."
जगेसर बात काटते हैं-
"अरे तो हमको नौकरी मिलेगी नहीं का?"
परमिला डाँटती है-
"चुप करिए पंडीजी!
2008 में जब आप बी०एड्० करते थे तब से एही कह रहे हैं।......
बिना दूध का लईका कौ साल जिलाएंगे??"
दिन के दस बज रहे हैं। तापमान अभी सैंतालीस के आसपास हो गया है।पूरा अस्सी घाट खाली हो गया है। दो चार नावें दूर गंगा में सरक रही हैं। चमकती जल धारा में सूर्य का वजूद हिल रहा है। कुछ बच्चे अभी भी नदी में खेल रहे हैं।
पंडीजी सीढ़ियों पर बैठे अपना नाम दुहराते हैं-
"पंडित जगेश्वर मिश्र शास्त्री
प्रथम श्रेणी,
आचार्य,
गोल्ड मेडलिस्ट,
नेट क्वालीफाईड,
बीएड 73%,
2011 में लेक्चरर का फार्म डाला अभी तक परीक्षा नहीं हुई।
2013 में परीक्षा दी,
नौ सवाल ही गलत आए थे और तीन सवालों के जवाब बोर्ड गलत बता रहा है।
मतलब साफ है इसमें भीकोई चांस नहीं।
डायट प्रवक्ता से लेकर उच्चतर तक की परीक्षा ठीक हुई है। पर छह महीने बाद भी भर्तीका पता नहीं।
प्राईमरी टेट में 105 अंक हैं। मतलब इसमें भी चांस नहीं।
2012 में पी०एचडी० प्रवेश परीक्षा पास की थी पर अभी तक किसी विश्वविद्यालय ने प्रवेश ही नहीं लिया।
तभी बलराम पांडे कन्धे पर हाथ रखते हैं-
"अरे शास्त्री जी!..
पहला मिठाई आप खाइए।"..
हमरा शादी तय हो गया है।.....
पं०रामविचार पांडे की लड़की परमिला से।
आप मेरा हाईस्कूल, इण्टर का कापी न लिखे होते तो
हमारा एतना अच्छा नंबर नहीं आता।
न हम शिक्षामित्र हुए होते।
न आज मास्टर बन पाते।
न आज एमे पास सुन्दर लड़की से बियाह होता।"
जगेसर मिसिर के हाथ में लड्डू कांप रहा है।
तभी बलराम पांडे फिर बोलते हैं-
"अच्छा!
'अग्नये स्वाहा' में कौन विभक्ति होती है एक बार फिर समझा दिजियेगा...
कोई पूछ दिया तो ससुरा बेइज्जती खराब हो जाएगी।"
जगेसर नशे की सी हालत में घर में घुसते हैं।
हवन- सामग्री तैयार करते हैं।
और
हवन पर बैठ जाते हैं। अबअग्नि में समिधाएँ जल रही हैं।
अचानक उठते हैं और अपने सारे अंकपत्र-प्रमाणपत्र अग्नि में डाल देते हैं।
और
चिल्लाते हैं-
"अग्नये स्वाहा!
अग्नये स्वाहा!!...
चतुर्थीविभक्ति एक वचन...
चतुर्थी विभक्ति एक वचन!!"
और
मूर्छित होकर वहीं गिर पड़ते हैं।
अगले दिन के अखबार में वही रोज की खबरें होंगी-
गर्मी ने ली एक और व्यक्ति की जान .....
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