Monday, December 16, 2013

चाहत.....

चाहतों की चाहतें, चाहत ही बनकर रह गयी।
उनको पाने की तमन्ना ख्वाहिशें ही रह गयी॥

कुछ तो उनमें बात थी जो, दिल तड़प कर रह गया।
उनकी अदाएँ देखकर, दिल मचल के रह गया॥
भावनाओं में थी मासूमियत की कुछ ऐसी लहर।
अ़क्लमन्दी की सारी क़यासें उनमें बहकर रह गयी॥

परम्पराओं में कुछ इस तरह जकड़ा हुआ था मेरा मन।
इश्क़ पाने की तमन्ना उनमें जकड़कर ही रह गयी॥
ग़ौर करता हूँ कभी मै, मासूमियत उनके चेहरे की।
पर मासूम तो था दिल भी मेरा, मासूम बनकर रह गया॥

इश्क़बाज़ी की भला इससे बड़ी इन्तहाँ क्या और होगी।
हम चाहते रहें इतना उनको, पर वो इनकारते ही रह गये॥
ज़िन्दगी के सफ़र में इससे बड़ा सदमा था न कोई।
चाहते थे जिनको दिल से, उनके मन में नफ़रतें ही रह गयीं॥

ख़्वाबों में मेरे आये कुछ इस तरह वो ख़्वाब बनकर।
फिर से उनको पाने की तमन्ना दिल में मचल गयी॥
हैरान हूँ मैं अपने दिल के नफ़रतों के अन्दाज़ से।
नफ़रतों से नफ़रत करके वो प्यार में ही बह गया॥

चाहतों की भला इससे बड़ी सज़ा क्या और होगी।
चाहतों की चाहतें चाहत ही बनकर रह गयीं॥