चाहा तो बहुत उसको,
लेकिन मैं कह नहीं पाया॥
बचपन साथ साथ पला,
जवानी साथ साथ बढ़ा।
शायद वो भी चाहती मुझको,
लेकिन मैं कह नहीं पाया॥
बचपन उंगली पकड़कर बीता,
जवानी हाथ पकड़कर चलती।
शायद उसको भी मेरे साथ का था इन्तज़ार,
लेकिन मैं कह नहीं पाया॥
आज जब मैं सोचता हूँ बचपन के वो दिन,
आम के छाँव के तले बिताये वो पल।
कहता उससे तो उसे भी आता याद,
लेकिन मैं कह नहीं पाया॥
शायद कोई अनजान सा डर था मन में,
जान कर भी उसको, अनजान बनता था उससे।
शायद वो भी पहचान लेती मुझे,
लेकिन मैं कह नहीं पाया।
कमी यही रह गयी मुझमें कि,
रिश्ते निभाने में रह गया पीछे।
खुद आगे बढ़कर हाथ थामता उसका,
तो आज बात कुछ और ही होती,
लेकिन मैं कह नहीं पाया॥
कहीं न कहीं उसकी भी गलती थी,
क्या मुझे वह नहीं जानती थी।
वो कह दे तो कह दे वरना,
हम कभी एक ना हो पायेंगे,
चाहते तो हम भी हैं उसको बहुत,
लेकिन ये बताये कौन उसको ।
चाहतें शायद नया इतिहास रचती,
लेकिन मैं कह नहीं पाया॥